समाज में स्त्री की पहचान

श्रीमती प्रभा श्रीवास्तव-  विभूति फीचर्स प्रस्तुती – सुरेश प्रसाद आजाद महिला जगत भारतवर्ष लोकतंत्र प्रणाली पर आधारित एक कल्याणकारी राष्ट्र है जिसका संविधान स्त्री-पुरुष दोनों को समानता का अधिकार देता…

प्रधानमंत्री जी का “मन की बात” जैसे कार्यक्रम ने बड़े पैमाने पर सामाजिक व्यवहार में भी परिवर्तन किया ….

मन की बात की 109वीं कड़ी में प्रधानमंत्री का सम्बोधन सुरेश प्रसाद आजाद 28 Jan, 2024  विश्व लोकप्रिय प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा “मन की बात” के माध्यम…

शोषित समाज दल द्वारा अबतक सात जिलो में अपना उमीदवार चुनाव में उतारे गए ……… सुरेश प्रसाद आजाद

Nawada Express <nawadaexpress@gmail.com> 6:49 AM (3 minutes ago) to me शोषित समाज दल की दो दिवसीय राष्ट्रीय समिति की बैठक दिनाँक :- 16 और 17 मार्च, 2024 ग्राम- भगहर, इमामगंज (गया) में शोषित…

मध्यप्रदेश में जीतू पटवारी का नेतृत्व स्वीकार करने से कतराते कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता

(पवन वर्मा-विनायक फीचर्स) प्रस्तुती – सुरेश प्रसाद आजाद मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी भले ही कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की गुड बुक में रहते…

विजय मंदिर आंदोलन के प्रणेता निरंजन वर्मा

(अंजनी सक्सेना-विभूति फीचर्स) प्रस्तुती – सुरेश प्रसाद आजाद मध्यभारत प्रांत के नेता प्रतिपक्ष रहे स्वर्गीय निरंजन वर्मा न केवल एक उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ थे बल्कि वे एक कुशल इतिहासकार भी थे।पर…

लोकतंत्र के सबसे बड़े त्यौहार , 18 में लोकसभा चुनाव में आपका स्वागत है ….

   पहले वोट के बारे में क्या आप उन करोड़ों युवा भारतीयों में से एक हैं, जो लोकतंत्र के रास्ते पर अपना पहला कदम रखने के लिए तैयार हैं? मेरा पहला…

सियासत’ जरूरी पर देश, धर्म और संस्कृति का सम्मान भी आवश्यक

( डॉ. वंदना गाँधी -विनायक फीचर्स) प्रस्तुती – सुरेश प्रसाद आजाद इस समय राजनीति का स्तर कितना गिर रहा है कि सियासत करने वाले कुछ लोग सभी सीमा-रेखा और मर्यादाओं…

   अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कथा वाचक मोटीवेशन स्पीकर जया किशोरी नेशनल क्रिएट अवार्ड से सम्मानित की गई ….

-सुरेश प्रसाद आजाद   विश्व लोकप्रिय प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी द्वारा 8 मार्च ( शुक्रवार) अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में प्रथम राष्ट्रीय रचनाकार…

शैव धर्म परम्परा

गिरिमोहन गुरु – विभूति फीचर्स प्रस्तुती – सुरेश प्रसाद आजाद शिव और अशिव का संयुक्त रूप है यह सारा जगत। इसके प्रतिनिधि के रूप में आदिकाल से माने जाते रहे हैं, अनादि देवता रूद्र, जिन्हें शिव, शंकर, महादेव, भव, शर्व आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। जहां शिव का विनाशकारी प्रलंयकर रूप उनकी संहार शक्ति का द्योतक है, वहीं मंगलकारी कल्याणकारी के रूप में हम उन्हें शिव के रूप में पाते हैं। सर्वप्रथम ऋग्वेद में रुद्र, शिव के रूप में भी दृष्टिगोचर होते हैं। यजुर्वेद के शत-रुद्रीय अध्याय में शिव के भयंकर एवं मंगलकारी दोनों रुपों का वर्णन है। अथर्ववेद में शिव महेश्वर के रूप में वर्णित है। तैत्तरीय आरण्यक में सारे जगत् को रुद्र रूप कहा गया है। क्यों न हो सारा जगत रुद्र रूप, आज भी सबसे अधिक मन्दिर सारे संसार में शिव के ही पाये जाते हैं। सिन्ध के मोहनजोदड़ों, पंजाब के हड़प्पा, बीकानेर (राजस्थान) जिले का काली बंगा, गुजरात में साबरमती नदी के किनारे लायलपुर आदि स्थलों पर खुदाई करने से एक ही नमूने के जीवन के ढंग के अवशेष मिले हैं, यह वैदिक काल की अथवा इसके पूर्व की सभ्यता के चिन्ह है। एक मुद्रा पर पद्मासनबद्ध मनुष्य की आकृति अंकित है, उसके सिर पर सींग हैं और आसपास पशु हैं। यह आकृति शिव का आदिरूप प्रतीत होता है। शिव के उपासकों का एक प्राचीन मत भी पाशुपत के रूप में शिवपुराण, लिंगपुराण, वामनपुराण एवं महाभारत आदि ग्रन्थों में उल्लेखित हैं, जिसके अनुयायी वर्तमान में गोस्वामी ब्राह्मणों के रूप में शिवोपासना में परम्परा से संलग्न हैं। गोस्वामी संज्ञा के पीछे (गोपति) आदि शब्द जान पड़ते हैं। वेदों में इन्द्र का एक नाम गोपति आया है। गो को पशु एवं पति को स्वामी भी कहते हैं। इस प्रकार शिव को गोस्वामी संज्ञा होने के कारण गोस्वामी ब्राह्मण अपना उद्भव रुद्र, शिव, मनु आदि से मानने में गौरव अनुभव करते हैं। पाशुपत लोग जीव को पशु और शिव को पशुपति कहते हैं। रामानुजाचार्य के समय पाशुपत के अतिरिक्त कापाल, कालमुख आदि शैव सम्प्रदायों के प्रभेद भी पढऩे को मिलते हैं। आजकल शैवों के प्रमुख 5 भेदों का महत्व उल्लेखनीय प्रतीत होता है- सामान्य शैव- ये लोग भस्म धारण करते हैं। भू-प्रतिष्ठित शिवलिंग की अर्चना करते हैं। शिव कथा श्रवण तथा अष्ट विद्या भक्ति पर विश्वास करते हैं। भस्म धारण करना ब्राह्मणों के 5 स्नानों में प्रमुख माना जाता रहा है। (देखिए पद्मपुराणांक कल्याण पृष्ठ 176) महर्षियों ने 5 स्नान बताए हैं- (1) आग्नेय (सम्पूर्ण शरीर में भस्म लगाना), (2) वारुण (जल से स्नान), (3) बाह्य (ऋचाओं द्वारा अभिषिक्त होना), (4) वायव्य (हवा द्वारा गोधूलि देह पर पडऩा) और (5) दिव्य (धूपयुक्त वर्षा की बूंदे मिलना)। गोस्वामीगण भस्म धारण कर ब्राह्मण धर्म का ही पालन करते हैं। भगवा वस्त्र धारण करने की परम्परा भी गोस्वामियों के ब्राह्मणत्व द्विजत्व का द्योतक है। डॉ. मुनीश्वरानंद गिरि ने महाभारत एवं वाल्मीकि रामायण आदि का प्रमाण देते हुए लिखा है कि काषाय वस्त्र बाबा जी ब्रह्मचारी सन्यासी के लिए ही है, ऐसा नहीं है। द्विज मात्र गृहस्थाश्रम में भी धारण करते थे। ऋषि-मुनि तथा उनकी स्त्रियां भी इसे धारण करती थी। महर्षि अगस्त्य की पत्नी के कषाय वस्त्र धारण का प्रमाण मिलता है। लोपामुद्रा राजकन्या थी, उसने ऋषि से विवाह होने पर ऋषि वेश बनाने के लिए काषाय वस्त्र धारण किया था। मिश्र शैव- ये शंकराचार्य के अनुयायी विष्णु, उमा, गणपति, सूर्य, शिव पंचोपासना तथा पीठस्थ लिंग की पूजा करते हैं तथा आदिकालीन गोस्वामियों की दश उपाधि यथा गिरी, पुरी आदि धारणा करते हैं। अनेक मठधारी महन्त गृहस्थ हो जाने के कारण गृहस्थ गोस्वामियों से अधिकांश घुल मिल गए हैं। अत: लोक मानस में तथा स्वयं गृहस्थ गोस्वामियों में भी धारणा पुष्ट हो गई है कि गोस्वामी समाज ब्राह्मणों का गुरु तो है किन्तु ब्राह्मणेतर है। जान पड़ता है यह भ्रान्त धारणा विरक्त महन्तों के प्रभाव एवं शिक्षा के अभाव के कारण मूल से न जुड़ पाने के कारण पनपी है, जबकि ऊँ नमो नारायणाय मंत्र भी दशनामी सन्यासियों की तरह दशनामी गोस्वामी ब्राह्मणों का भी सम्बोधन मंत्र है। पुराणों के अनुशीलन से सिद्ध होता है कि यह मंत्र भी ब्राह्मणों का, ऋषियों का परम मन्त्र रहा है। कल्याण गोरखपुर के अनुसार- जो श्रेष्ठ मानव ऊँ नमों नारायणाय इस अष्टाक्षर मंत्र का जप करते हैं उनका दर्शन कर ब्राह्मण- घाती भी शुद्ध हो जाता है तथा वे स्वयं भी भगवान विष्णु की भांति तेजस्वी प्रतीत होते हैं। हरिकथा के अनुसार श्री सम्प्रदाय के प्रवर्तक श्री रामानुजाचार्य के गुरु श्री नाम्बि ने उन्हें ऊँ नमों नारायणाय मन्त्र दिया जिसे उन्होंने गुप्त न रखकर सबको बता दिया। स्नान का महत्व बताते हुए भी पद्मपुराण कहता है कि मन की शुद्धि के लिए सबसे पहले स्नान का विधान है। घर में रखे हुए अथवा ताजा जल से स्नान करना चाहिए। मन्त्र वेत्ता विद्वान पुरुष मूल मन्त्र (ऊँ नमो नारायणाय) से तीर्थ की कल्पना करें। वीर शैव- यह अपने आपको वीर, नन्दी, भृंगी, वृषभ और स्कन्ध इन पांच गुणों के गोत्र बताते हैं। ये आजीवन शरीर पर लिंग धारण करते हैं। अत: लिंगायत भी कहे जाते हैं। वसब शैव- यी वीर शैव की सुधारवादी शाखा है। कापालिक शैव- ये मनुष्य की खोपड़ी लिए रहते हैं। मद्य-मांस आदि का सेवन करते हैं। ये वाममार्गीय कहलाते हैं। आदिकाल से हम वनवासी, आजीवक, मस्करी, पाशुपत, वीर शैव, कापालिक आदि अनेक रूपों में भगवान शिव का पूजन-अर्चन करने वाले शैवों को पाते हैं। शैव ही नहीं, वैष्णव जगत में भी भगवान शिव की वैष्णावानां यथा शंभु: (भागवत) के रूप में स्थान प्राप्त है। वैष्णवों के चार सम्प्रदायों में एक सम्प्रदाय के संस्थापक शिव ही माने गये हैं। पुराणों में, हरि हरयो: भेदों नासिक कहकर शिव और विष्णु की एकरूपता दिखलाई है। मानस में भी गोस्वामी जी ने राम और शिव का सम्बन्ध स्पष्ट करते हुए शैवों तथा वैष्णवों में सामंजस्य स्थापित किया है। (विभूति फीचर्स) ReplyForwardYou can’t react with an emoji to this message

महाशिवरात्रि

महाकाल की उपासना की परंपरा श्रीमती उर्मिला निरखे-विनायक फीचर्स प्रस्तुती – सुरेश प्रसाद आजाद आकाशे तारकंलिंगम पाताले हाटकेश्वरम् मृत्यु लोके महाकालो लिंगत्रयो नमोस्तुते। आकाश में तारकालिंग, पाताल में हाटकेश्वर, मृत्युलोक में महाकाल स्थित है। मृत्युलोक विशाल है। ज्योर्तिलिंग भी अनेक हैं, जिनमें महाकाल उज्जैन में स्थित है। सौराष्ट्रे सोमनाथंच, श्री शैले मल्लिकार्जुनम् उज्जनिन्यां महाकालं ओंकार ममलेश्वरम्। भगवान महाकालेश्वर शिव का स्वरूप हैं। शिवत्व सम्पूर्ण ब्रहा्राण्ड में व्याप्त हैं, क्योंकि वह महाकाल है ऐसी स्थिति में महाकाल की उपासना की परंपरा पर चर्चा करना वास्तव में बहुत सीमित होना है पर महाकाल के कारण अवंतिका का पावन क्षेत्र विश्व व्यापी ख्याति अर्जित कर सका है। सारे संसार के शैव अपने मन में मालवा की शस्य-श्यामला भूमि में स्थित उज्जैन के महाकालेश्वर दर्शन की आकुलता एवं जिज्ञासा सहेजे रहते हैं। मालवा क्षेत्र में भारत के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा भगवान महाकालेश्वर की उपासना अधिक प्रचलित रही है। स्कंधपुराण के अवन्तिखंड में उल्लेख है कि विशाल अवन्ति क्षेत्र में एक महाकाल वन था जिसमें लाखों भक्त जन हजारों शिव लिंगों की पूजा-अर्चना करते थे। समय बीतता गया, वह प्राचीन वन लुप्त हो गया किन्तु महाकालेश्वर का मंदिर आज भी अपने मूल स्थान पर स्थित है। पुराणों तथा कालिदास, बाणभट्टï आदि महाकवियों ने इस मंदिर की भारी महिमा गायी है। प्राचीनकाल में उज्जैन का नरेश चण्ड प्रद्योत था। इस बात के अनेक प्रमाण हैं कि उस समय भी महाकाल मंदिर भारी भीड़ को आकर्षित करता था। महाकाल मंदिर में जो अभिलेख विद्यमान हैं, उसके अनुसार इस मंदिर का पुनर्निर्माण अत्यंत ही भव्य रूप में परमार काल में हुआ। दुर्भाग्य से सन् 1235 में अल्तमश ने इस मंदिर को नष्टï कर दिया। अठारहवीं सदी के पूर्वाद्र्ध में जब राणोजी शिंदे उज्जैन के शासक बने उनके मंत्री रामचंद्र शेणवी ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। आज  जो मंदिर विद्यमान है, वह मराठा काल में निर्मित हुआ है और तीन खंडों में विभाजित है। सबसे नीचे महाकालेश्वर मध्य में ओंकारेश्वर और ऊपर नाग चंद्रेश्वर (सिद्धेश्वर) है। जब हम त्रिखण्डीय मंदिरों की चर्चा करते हैं तो मालवा निमाड़ परिक्षेत्र के दो मंदिर हमारे सामने आते हैं पहिला नेमावर का सिद्धेश्वर मंदिर जो देवास जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यहां के मंदिर में महाकालेश्वर दूसरे खण्ड में विद्यमान है। नर्मदा किनारे ही एक और ज्योर्तिलिंग ममलेश्वर (ओंकार मांधाता) है। यहां ओंकारेश्वर का जो प्राचीन मंदिर विद्यमान है, उसके सर्वोच्च खण्ड पर महाकालेश्वर विद्यमान हैं। इस प्रकार उज्जैन के महाकालेश्वर, नेमावर के सिद्धेश्वर और मांधाता के ओंकारेश्वर मंदिर एक-दूसरे के पूरक हैं। इनसे जो त्रिकोण बनता है इससे परिसीमित मालवा अंचल शैवमत के गुह्यतंत्र की सिद्ध भूमि माना जा सकता है। इन तीनों मंदिरों की परस्पर दूरी साठ कोस की है( उज्जैन, नेमावर, ओंकारेश्वर)परमार काल से ही महाकालेश्वर की विशिष्ट उपासना की जाती रही है। खरगोन जिले में ऊन नामक स्थान, परमार काल में 99 विशाल मंदिरों का नगर था। अब तो वहां मात्र दो-चार मंदिरों के अवशेष रह गए हैं, इनमें एक जीर्ण-शीर्ण महाकालेश्वर का मंदिर भी है। यह मंदिर भी त्रिखण्डी रहा था। अब तो मात्र पुरा अवशेष है जो प्रमाणित करता है कि यह आकर्षक शिखर वाला मंदिर भूमिज शैली से बना है। इसी शैली का एक मंदिर रतलाम जिले के धराड़ ग्राम में है किन्तु इसका जीर्णोद्धार होने के पश्चात् मंदिर का मूल स्वरूप दिखाई नहीं देता है। उज्जैन जिले की महिदपुर तहसील में झार्डा और इन्दोक के मध्य एक अत्यंत ही आकर्षक परमारकालीन मंदिर विद्यमान है। यह मंदिर भगवान महाकालेश्वर का है। देवास जिले में एक ग्राम है बिलावली है, यहां कुएं के उत्खनन से प्राप्त पुरावशेषों से सिद्ध हुआ है कि बिलावली (विल्लवपल्ली) में प्राचीन काल के आरंभ से ही बस्ती थी। एक पुरातत्वीय टीले के उत्खनन से यहां भी एक विशाल महाकाल मंदिर का होना पाया गया है। मंदिर तो आज भी है परन्तु वह पूर्णरूपेण आधुनिक है। मालवा की महाकाल परम्परा का विवरण तब तक समाप्त नहीं होता जब तक हम शाजापुर जिले के ग्राम सुन्दरसी  की चर्चा नहीं कर लेते। परमार काल में सुन्दरसी में भूमिज शैली के अनेक हिन्दू और जैन मंदिर थे। अब तो वे नष्ट प्राय: हो चुके हैं किन्तु भाग्य से प्राचीन महाकाल मंदिर का मंडप, शिखर, यज्ञशाला, कोटितार्थ कुंडआंगन खंडित रूप से आज भी विद्यमान हैं। यह मंदिर भी भूमिज शैली ( बिना नींव के ) बना हुआ है। मंदिर के भग्नावशेष बताते हैं कि मंदिर  अत्यंत विशाल एवं कलात्मक रहा होगा। वैसे सुन्दरसी उज्जैन का लघु संस्करण है, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है। महाकाल के कुछ और मंदिर मालवा क्षेत्र के कुछ ग्रामों में विद्यमान है। वे इतना तो सिद्ध करते हैं कि महाकाल की उपासना की परंपरा प्राचीनकाल से आज तक घनीभूत रूप से विद्यमान रही है। (विनायक फीचर्स) ReplyForwardYou received this via BCC, so you can’t react with an emoji