सीखो गिलहरी-तोते से -डॉ सत्यवान सौरभ

(साक्षात प्रेम देखकर लिखी गयी कविता) 

पेड़ की डाली पर बैठे,

गिलहरी और तोते।

न जात पूछी, न मज़हब देखा,

बस मिलकर चुग ली रोटियाँ छोटे।

न तर्क चले, न वाद हुआ,

न मन में कोई दीवार थी।

एक थाली में बँटी मोहब्बत,

जहाँ बस भूख ही सरकार थी।

और हम, नाम के इंसान,

द्वेष के रंग चढ़ाए फिरते हैं।

सगे भी सगों से कटते हैं,

अपनेपन को दरकिनार करते हैं।

भाई-भाई में खाई क्यों?

क्यों मन में ज़हर उगाते हो?

सीखो उन परिंदों से,

जो बिना शोर के प्रेम निभाते हो।

धरती सबकी, अन्न सबका,

हवा न किसी की जागीर है।

प्रकृति पुकारे हर साँझ-सवेरे,

“जो बाँटे वही गंभीर है।”

कब सीखोगे इंसान बनना,

गिलहरी और तोते से?

कब छोड़ोगे नफ़रत की आदत,

चलो कुछ लज्जा लो खुद से।

-डॉ सत्यवान सौरभ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *