ज्ञानचंद मेहता
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गांधी जी के जीवन को हम सहज और सरल रूप से अध्ययन करें टीबी एक श्रेष्ठ और महान व्यक्ति थे। दोष जिसमें नहीं होता है। लेकिन, उन से कुछ कम गलतियां होती तो वे अधिक प्रिय होते।
गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वे अपनेमुख में चांदी के चम्मच लिए हुए पैदा नहीं हुए थे तो ऐसा नहीं था कि वे कोई ऐरा – गैरा नत्थू परिवार से पैदा हुए थे । वरना, एक औसत बुद्धि का मंद छात्र उस जमाने में ऐसे ही बैरिस्टर की पढ़ाई पढ़ने लंदन नहीं चला जाता है। पिता जी दीवान थे। दीवान का माने समझे या ऐसे ही? आज की भाषा में बोले तो CA (चार्टड अकाउंटेड) . तब भारतीय उपमहाद्वीप में किसी प्रशासन या व्यापार में हिसाब या बही-खाते रखने वाले व्यक्ति को ‘दीवान जी’ कहा जाता था। ऐसा सम्मानित परिवार थे। पढ़ने में तेज होते तो सुभाष बाबू जैसे ICS होते।
1915 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से काले समुदाय के हक व हकूक की लड़ाई जीतकर वापस भारत आए। अंग्रेजों के विरुद्ध एक अंग्रेज द्वारा स्थापित संगठन कांग्रेस की छात्र छाया स्वतंत्रता की लड़ाई चल रही थी। गांधीजी शामिल हो गए। थोड़े ही दिनों में अंग्रेजों के बीच सत्यवादी, उदार और अहिंसा के प्रबल समर्थक गांधी जी लोकप्रिय हो गए। राजगुरु, रामप्रसाद, बिस्मिल, शहीद ए आज़म भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद की ओर से बेरूखी मिजाज के गांधी जी का सितारा ब्रितानियों हुकूमत में चल निकल।
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वीर सावरकर के पैने प्रभाव से अंग्रेज की सहमी हुई तबियत गांधी के वजह से सुधारने लगी थी। उन दिनों वीर सावरकर और सुभाष चंद्र बोस से अधिका विद्वान और प्रभाव कारी नेता कोई दूसरा नेता नहीं था। मुस्लिम लीग में वह साहस नहीं था जो गांधी जी के राजनीति में पधारने पर उत्पन्न हुआ। देश के मुस्लिम लीग के नेताओं का मनोबल सातवें आसमान पर तब कुलांचे मारने लगा जब गांधी जी की सलाहियत में भारत के हिंदू अंग्रेजों के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन भाग लेने के लिए ललकार दिया। ‘माया मिली न राम!’ यह कहावत ऐसे ही अवसर पर प्रयुक्त होता है। अंग्रेज तुर्की में विजय हुए, न टर्की का खिलाफा की खिलाफत बची , न गांधी जी की पानी बची। उस वक्त की कहानी आप कहीं और पढ़ लें।
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गांधी का सत्याग्रह चालू रहा सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार करने के समर्थक अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी!
गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 मे महात्मा की उपाधि दी थी। तीसरा मत ये है कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने 12 अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे उन्हें महात्मा कहकर सम्बोधित किया था। एक मत के अनुसार गांधीजी को बापू सम्बोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति उनके साबरमती आश्रम के शिष्य थे सुभाष चंद्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं।
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इसके साथ ही बापू को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इस ललित निबंध को यही समाप्त करता हूं! -ज्ञानचंद मेहता