हिसुआ कुशवाहा सेवा समिति द्वारा याद किए गए गुदड़ी के लाल भत्तु महतो ….

  • सुरेश प्रसाद आजाद 

    अधिकतर महापुरुषों का अर्विभाव ही विपत्ति के साथ होता है , आते ही माता-पिता को लील लेता है क्योंकि समाज में अपने सार्मथ्य पर स्थापित होने के लिए ही यह  विपत्ति आती है तथा एक नया इतिहास बनाने के लिए अवतारित होता है । इसी श्रेणी में भतु महतो‌  का नाम भी  आता है।

   ‌ ‌इनका जन्म ग्राम कहुआरा प्रखंड नारदीगंज जिला नवादा में दिनांक 27 अगस्त 1920 को हुआ था । परिवार निर्धन व भूमिहीन मजदूरी कर जीवकोपार्जन का एकमात्र सहारा था । पहले पिता चल बसे आशीर्वाद का हाथ उठ गया परंतु आंचल की शीतलता बरकरार थी , परन्तु 3 वर्ष की आयु में ही वह भी चलवसी वे बिल्कुल अनाथ हो गए।

     फुआ का सहारा मिला और लालन-पालन भी फुआ के द्वारा किया ‌गया । वहीं पढ़ें और वही बढ़े सातवीं तक की  शिक्षा वही प्राप्त की । बचपन से ही वे काफी मेहनती थें । 15 वर्ष की उम्र से ही समाज सेवा राजनीति में रुचि लेने  लग गए ।

 गांव के कुछ लोगों के आर्थिक सहयोग से टूटा – फूटा घर को रहने लायक बनाया । जीविकोपार्जन के लिए कोल्हू का चुनाव किया । किसी तरह बैल का जुगाड़ हुआ परन्तु वह तेल केवल रात में ही निकालते थे । क्योंकि दिन में राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यों में संलग्न  रहते थे । एक समय ऐसा  आया कि बैल भी मर गया‌। फिर भी तेल पेरने का काम जारी रहा है । कहा तो जाता है कि स्वयं कोल्हु का बैल भी बनकर कार्य को  पूरा करते रहे । यही है द्रदगी का मिशाल ।

      पत्नी बतासो देवी भी तेल निकालने में सहायक बनी रही । इधर स्वतंत्रता संग्राम की धारा तेज हो चली उसमें वे अपने को प्रवाहित करने का निश्चय कर 

  ‌लिया‌ ।

1942 में उग्र आंदोलनकारियों में घोषित किए गए और जेल पहंचा दिए गए । जेल से निकलने के बाद में वे एक क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी होकर निकले । तेल निकालने का धंधा बंद हो चुका था  बस आजादी की लौ  लेकर घुमक्कड़ का जीवन जीना एक मात्र सहारा रह गया था।  पत्नी का भी निधन हो गया और वे नि: संतान ही थे ।

      ‌  वे पिछड़ी जाति से आते ही  थें । किंतु इनका‌ रहन – सहन ऊंची जाति के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ होने लगी‌।  अनुग्रह बाबू , जगजीवन राम, शत्रुघ्न बाबू और बिशेष कर मथुरा बाबू का स्नेह व सहारा मिला । जीवन भर वे मथुरा बाबू  का विश्वास पात्र बनकर रहे। जिससे उन्हें समय और सहारा मिला । इनके लिए कोई बाद, कोई विभेद नहीं ।सबके साथ  रम गए , किंतु अपनों को त्याग नहीं , यही एक पूंजी थी इनके विकास की ।

  ‌‌ स्वतंत्रता मिली कांग्रेस पार्टी की सेवा ही एक व्रत था।  उनका ज्यादा समय कांग्रेस कार्यालय में बीतता।   आजादी के बाद स्वामी सहजानंद सरस्वती की आंदोलन में कूद पड़े बना दिए गए शिविर इंचार्ज  इस पद का भरपूर उपयोग किया । खत्म हुई जमींदारी प्रथा समाप्त हुआ आतंक और शोषण का एक युग यही था लाल का कमाल । दूसरी शादी फुलवंती देवी के साथ हुई उन्हें शिक्षिका बनाया और जीने का आधार मजबूत किया । 1957 में प्रथम पंचायत चुनाव में ही अपना पंचायत का निर्विरोध मुखिया निर्वाचित हुए सभी वर्गों का साथ मिला आजीवन इस पद को सुशोभित करते रहे ।

     इसके बाद इसके विकास में चतुर्थी द्वार खुल गए वाद में पद इनका पैर चुमने लगे एक ही साथ कई पदों को सुशोभित करने का सुंदर अवसर  मिलता गया । जिला पंचायत परिषद की स्थापना काल से ही मंत्री का पद ग्रहण कर 1972 तक संभाला ।

    1972 में नवादा जिला बना आपको नवादा जिला पंचायत परिषद का अध्यक्ष बना दिया गया जिसे मृत्यु प्रांत निभाया । उधर पंचायती राज व्यवस्था ऐसे लागतार बरकरार रही तो इधर सहकारिता क्षेत्र में वोर्ड के डायरेक्टर आजीवन बने रहे । साथ ही साथ उपाध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया । पार्टी में  अपनी सेवा देना आपकी दिनचर्या रहा । वे नवादा जिला से भारत सेवक समाज का 1977 में उपाध्यक्ष बनाए गए और आजीवन इस पद पर बरकरार रहे । उन्हें 1972 से ही नवादा जिला स्वतंत्रता सेनानी संघ के अध्यक्ष मृत्यु परान्त  उनका उत्तरदायित्व को भी सम्हालने का मौका मिला ।

      1970 में कांग्रेस का विभाजन हो गया आप सत्येंद्र बाबू के साथ मोरार जी देसाई के संगठन कांग्रेस में आ गए । 1974 के संपूर्ण क्रांति में जमकर हिस्सा लिया इसका पुरस्कार मिला । 1977 में गोविंदपुर विधानसभा का टिकट मिला लड़ाई पिछड़ा बनाम अगड़ो का साथ मिला और विजय श्री ने माला पहनाई और गोविन्दपुर  विधानसभा में भी चमकने लगे । मंत्री परिषद में भी आने के लिए प्रयासरत रहे  सारा जुगाड़ हो चुका था किंतु हसरत पूरी ना हो सकी , सपना – सपना ही रह गया । जनता पार्टी टुट गई । मंत्री मंडल भंग हो गया मध्यावधि चुनाव की घोषणा की गयी । पुनः जनता पार्टी से प्रत्याशी बने किंतु कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व विधायक अमृत प्रसाद जी के होने के कारण स्वजातीय  मतों का विभाजन हुआ  और दोनो को हार का सामना करना पड़ा। तब से जिले के राजनीतिक में इस समाज का प्रतिनिधित्व दिनों-दिन नहीं के बराबर रहा।

          वे तो गुदड़ी के लाल थे ही परन्तु पूर्ण कंगाल थे इसलिए 1980 के बाद कभी चुनाव नहीं लड़े । किंतु राजनीति में हमेशा बने रहे वे जीवन भर मुखिया पद के साथ-साथ कई पदों का उत्तरदायित्व निभातें हुए 26 दिसंबर 2000 को इस संसार को छोड़ कर चले गए ।                                                                                                                                                                                                            हिसुया कुशवाहा सेवा समिति के द्वारा पूर्व विधायक  भत्तु महतो का जन्मदिन मनाया गया इस अवसर पर  दिवंगत पूर्व विधायक पत्नीं  सेवा निविर्त्त शिक्षिका फुलमंती देवी ने उनके  द्वारा उपरोक्त किए गए कार्यो का जिक्र की इस अवसर बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष श्रीमती ललिता देवी ,हिसुया कुशवाहा सेवा समिति

           के अध्यक्ष मुशाफिर महतो,एमएलसी पर्तियासी श्रवण कुशवाहा ,नवादा जिला कुशवाहा सेवा समिति के वरिष्ट पदाधिकारी श्री बैजनाथ प्रसाद ,देवनाथ प्रसाद,डॉ भोला प्रसाद आदि कई लोगों  द्वारा सम्बोधित किया गया .

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