( रामलला प्राण-प्रतिष्ठा दिवस पर) 

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  •  डॉ ब्रह्मानन्द विश्वकर्मा

राज्यारोहण से पहले  , निर्वासन वदा है |

इस जीवन में ठंडी- छाॅव,यदा- कदा है॥ 

चेतना मूर्छित न हो, जगाए रखिये |

संत के घर दिवाली, सदा- सदा है॥ 

अंतर्मन का कोई, अंतिम सर्ग नहीं है|

संकल्प अंगद के पाॅव,हनुमान -गदा है॥ 

रामकाज में बन गिलहरी, जो हो सो कर|

लघु को बना गुरु, दिखा- तू सबसे जुदा है॥ 

नाव पर असंख्य हैं, मांझी मात्र एक |

राम मेरा ही नहीं, सबका खुदा है॥ 

                    डॉ. ब्रह्मानन्द विश्वकर्मा

                        22 जनवरी 2024

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