बालक ध्रुव की कहानी
(जनक वैद-विभूति फीचर्स)

बच्चों! सतयुग में उत्तानपाद नामक एक राजा हुए हैं। उसकी दो पत्नियां थीं। बड़ी रानी सुनीति के बेटे का नाम ध्रुव था और छोटी पत्नी सुरुचि के बेटे का नाम था उत्तम। दोनों की आयु लगभग बराबर थी। बड़ी रानी एक नेकदिल और पति की सेवा करने वाली थी, जबकि छोटी दुष्ट बुद्धि वाली। छोटी रानी ने अपनी दुष्ट बुद्धि से ऐसा षड्यंत्र रचा कि राजा ने बड़ी रानी को अपने बेटे ध्रुव के साथ महल से दूर एक छोटे से घर में भेज दिया। अब बालक ध्रुव का बहुत मन करता कि वह पिता की गोदी में बैठे इसलिए हिम्मत करके वह महल में आया। उस समय उसके पिता राजा उत्तानपाद सिंहासन पर बैठे थे। ध्रुव को सामने देख राजा ने उसे प्यार से गोद में बिठा लिया। उसी समय छोटी रानी आई और धु्रव को पिता की गोद से उतार कर अपने पुत्र को राजा की गोद में बैठा दिया। यह देखकर ध्रुव को बहुत दुख हुआ और उसने अपनी मां से इसका कारण पूछा, तो मां ने बताया कि, ‘तुम बड़े बेटे हो और इसीलिए राजगद्दी पर तुम्हारा स्वाभाविक अधिकार है लेकिन तुम्हारी छोटी मॉं अपने बेटे को राज गद्दी पर बैठाना चाहती है।’

मां से यह सुन बालक ध्रुव बड़ा दुखी हुआ और रो रो कर मां से बोला कि,’ मुझे कुछ ऐसा बताओ कि पिता जी मुझे भी राजमहल में रहने दें।’ तब मां ने समझाया कि उसे सच्चे मन से,भगवान की आराधना करनी होगी।
मां की बात सुन, बालक ध्रुव उसी रात, किसी को बताए बिना दूर घने जंगल में चला गया और सच्चे मन से कठिन तपस्या की , जिससे प्रसन्न हो कर ,ईश्वर ने उसकी मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया। बाद में राजा स्वयं ध्रुव के पास आए और उसे राजा मनोनीत किया। राजा बनने के बाद ध्रुव ने प्रजा की भलाई व उन्नति के लिए अनेक काम किये। राजा ध्रुव के न्यायपूर्ण शासन के कारण ही हमारे भारतीय समाज ने बालक ध्रुव को आकाश में उच्च स्थान दिया और आज भी ईश्वर भक्त, कुशल प्रशासक ध्रुव दुनियाभर में ध्रुव तारा बनकर अपनी चमक बिखरे रहे हैं। (विभूति फीचर्स)