दिल्ली की जीत! – ज्ञानचंद मेहता

दिल्ली की जीत का अर्थ है, दिल्ली की पूरी जनता का  केजरीवाल के  मकड़ जाल से मुक्त होना। दिल्ली की यह मुक्ति आसान न थी । अरविंद केजरीवाल कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। हार गया ! उसे हराने के लिए उसके बराबर भर की शक्ति का दिल्ली में पहली बार उपयोग किया गया होगा, ऐसा तो आप मानते हैं, तभी तो वह हारा !

      केजरीवाल भारतीय रेवेन्यू सर्विस के एक तेज तर्रार कुशल और योग्य अधिकारी थे। उन्हें किसी पागल कुत्ते ने तो काटा नहीं होगा कि वे यह जानते हुए भी कि किसी एनजीओ का गठन करके उसका संचालन करने के लिए संचालक को और उसके संगठन को पॉलिटिकल मोड में लाना सख्त मनाही और गैर कानूनी है, अच्छी खासी सरकारी नौकरी छोड़ कर एक एनजीओ खड़ा किया।अपनी राजैतिक रुझान को आम आदमी पार्टी स्थापित कर एक ठोस दिशा दे दिया।2012-13 में अन्ना हजारे को गुरु मानकर केजरीवाल ने काफी उछल – कूद किया था। तब किसे मालूम था कि बंदा क्या चीज है। दिल्ली में सरकार भी बना दिया। 

       केजरीवाल या किसी अज्ञात ताकत का दुर्भाग्य यह हुआ कि केंद्र से कांग्रेस का पतन हुआ, और बीजेपी सत्तारूढ़ हो गई। यह घटना केजरीवाल की योजना पर हठात उनके सिलेबस से बाहर का एक भारी कोर्स आ गया होगा। अब ? अब तो सामने एक राष्ट्रवादी सरकार थी।

 ‘आप’ पार्टी के कम करने के तौर तरीकों को देखकर उसे अर्बन नक्सली आदि  बताया जाने लगा । कई ऐसे चिन्ह मिलते थे लगता था यह पार्टी कहीं अलग से ऑक्सीजन प्राप्त कर रही है। एक अर्धराज्य के मुख्यमंत्री का देश के प्रधानमंत्री के साथ संवाद करने का केजरीवाल का लहजा ओछा लगता था।  दो तिरंगों को अपने पीछे इस प्रकार से सजा कर प्रेस कांफ्रेंस करना जैसे वे अलग से दिल्ली स्टेट के शासनाध्यक्ष हों।

डीप स्टेट सा व्यवहार ! मैं दिल्ली का मालिक हूं। प्रधान मंत्री को कुछ पढ़ा – लिखा होना चाहिए! जेल जाने पर भी cm के पद से इस्तीफा नहीं देना। और, केजरीवाल के  भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया का केजरीवाल को महत्व देना। भारत सरकार के कान खड़े करते थे। लेकिन, दिल्ली की जनता का केजरीवाल से सिर्फ मुफ्त बिजली और पानी से था। इस जन्म में तो मोदी जी , आप मुझे हरा नहीं सकते हो…आदि, आदि!

 निश्चित रूप से उन्हें किसी तीसरी शक्ति पर गुमान होगा।

     तब, केजरीवाल की हार कैसे संभव हुआ?  केजरीवाल और उनके आगे पीछे की शक्ति के विरुद्ध एक ही विकल्प कारगर था, RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ)! 

  आप का सवाल होगा यही RSS तो झारखंड में भी था। क्यों नहीं कारगर हुआ  था?  जवाब है, महाभारत में अभिमन्यु का वध कैसे हो गया थ? सभी तो थे, बहादुर सेना थी। एक अर्जुन   नहीं थे।

 अर्जुन का होना आवश्यक है। अर्जुन भारत है, अर्जुन शिव का वरदान है, अर्जुन श्री कृष्ण की आत्मा है, राष्ट्र है, राष्ट्रीयता है। केजरी ने भारत को खतरे में डाल दिया था। अर्जुन तड़प उठा! संघ ने दिल्ली में दिन रात एक कर अपने(संघ)होने की सिद्धता प्रमाणित किया। दिल्ली से अराष्ट्रीय तत्व मुक्त हो गए। 

  गांधी जी ने इन्हीं दिनों के लिए संघ का सूक्ष्म अध्ययन कर कहा था,”संघ उच्च कोटि का संगठित और अनुशासित संगठन है। इसकी क्षमता का उपयोग भारत के हित या अहित के लिए किया जा सकता है…… ” गांधी जी के 16 सितंबर 1947 का उपरोक्त कथन संपूर्ण गांधी गांधी वाड़्मय में  है

दर्ज़ है।

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