जय बोलो महात्मा गांधी की!

ज्ञानचंद मेहता

यह गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता  के प्राप्त होने के बाद हुआ है। और, स्वतंत्रता के लिए हजारों, लाखों भारत मां के सपूतों ने अपने- अपने प्राणों की आहुतियां दी है ! हजारों सेना तोपों से उड़ा दिए गए, अनेक को फांसियां दे दी गई। कितने ने काला पानी की सजाएं काटी। आसानी से आजादी नहीं मिली है।

  क्रांति रुकने का नाम नहीं ले रही थी। ब्रिटिश हुकूमत बहुत परेशान थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैंड इतना सुस्त और कमजोर हो गया था कि उन्हें भारत को संभालना मुश्किल हो रहा था।  लेकिन, झुकी आंखों थके मन और लहूलुहान , घायल, क्षत- विक्षत होकर  वह इंडिया से विदा नहीं होना चाहता था। सो, उसने गांधी को चुना! अंग्रेज का लीडरशिप परेशान था, आजाद ही हिंद फौज से। ब्रिटिश इंडिया की सेना के हर रैंक से लोग त्यागपत्र देकर आज़ाद हिंद फौज में सम्मिलित हो रहे थे। पूरा लंदन डर रहा था, नेताजी सुभाष चंद्र बोस से। दुनिया अंग्रेजों के मिजाज को समझ रही थी। और, अंग्रेज भी समझ रहे थे,जाना तो पड़ेगा।

नायक बनाया गांधी जी को। गांधी जी ने चरखा चलाया। देश भर में प्रवास किया। सत्य , अहिंसा का प्रचार किया! फिर, चरखा चलाया। खूब चरखा चलाया। चरखेंकी आवाज देश के कोने – कोने तक गई। गांधी के सत्य और अहिंसा की प्रसिद्धि हो गई है, ऐसा अंग्रेज मानने लगे ! क्रांतिकारियों का केंद्र बंगाल से ही किसी ने महात्मा तो किसी आदर वश राष्ट्रपिता कह दिया !तब तो अंग्रेज पक्का समझ गए कि काम चांदी हो गया है!  यही उचित समय है पतली गली से निकल लेने का। वरना, आजाद हिंद फौज खदेड़-खदेड़ कर भगाएगी।  सो, समय से पूर्व बड़ी हड़बड़ी में अंग्रेजों ने कहा अरे भाई , संविधान वगैरह बनाते रहना न बाद में पहले आजादी तो ले लो ! 

गांधी जी ने कहा, ‘ठीक है !’

तो, पक्का हुआ ना भारत इधर और पाकिस्तान उधर और इधर भी!  यानी, भारत के तीन टुकड़े हुए, दो टुकड़े पाकिस्तान कहे गए और एक टुकड़ा भारत हुआ, नेहरू का इंडिया ! 

 लो,   बात तो थी 26 जनवरी की लेकिन, 15 अगस्त को ही मामला फरिया गया था। तब तय हुआ, संविधान को  ठीक – ठाक कीजिए। यह काम पूरा हो जाएगा तो किसी साल 26 जनवरी को भारतीय संविधान लागू होने का धूम – धाम से उत्सव करके 26 जनवरी की मान – मर्यादा को भी स्थापित कर दिया जाएगा। सो, आजादी के  2 वर्ष  5 महीने  11 दिन बाद 26 जनवरी 1950  भारत का अपना संविधान लागू किया गया। आकाश में झंडा फहराया गया। परेड होते हैं। बैंड बजते हैं। मिठाई खाते है। महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू की  हम जयजयकार करते हैं।

और, भूल जाते हैं, असंख्य अमर बलिदानियों को! जो लौट के घर नहीं आए!  नके नाम कोई गीत नही, संगीत नहीं।  गीत कोई है तो , साबरमती का संत तूने कर दिया कमाल! दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल…

ज्ञानचंद मेहता

 कहते हैं ,   उस समय न जानें क्यों एक नारा होता था – 

          चार चवन्नी चांदी की

       जै बोलो महात्मा गांधी क

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