चेहरा तमतमा उठा

सुदर्शन भाटिया- विनायक फीचर्स  

प्रस्तुती-सुरेश प्रसाद आजाद

बादशाह जफर बंदीगृह में पड़े थे। ताला खुला और मेजर हडसन ने काल कोठरी में प्रवेश किया। क्रूर बन चुका था वह। 

उसे बंदी बादशाह के जख्मों पर नमक छिड़कना था आज भी। जाते ही पूछा- ‘हूं बादशाह, किस सोच में डूबे हो?Ó   

‘नहीं। मैं खुश हूं। सामान्य सा हूं। कोई सोच या चिंता नहीं।Ó  

‘सच कहो, क्या जेल अच्छी नहीं लग रही?’ रोज-रोज मिलने वालीं यातनाएं दुखी तो नहीं करतीं? 

‘नहीं तो।‘ कहकर बादशाह चुप हो गए।

‘पता चला है कि तुमने कई दिनों से रोटी भी नहीं खाई।’ 

बादशाह ने कोई उत्तर नहीं दिया।

‘तुम तो जानते हो कि हम अंगे्रज मुगल बादशाहों को नए-नए नजराने देने में खुशी महसूस करते हैं। आज भी मैं खास नजराना भेंट करने आया हूं। ‘ कहते-कहते मेजर हडसन ने संकेत किया।

हाथों में थाल लिए एक सिपाही आगे आ गया। थाल को रेशमी रुमाल से ढंक रखा था। ‘रख दो इसे’ मेजर  ने हुक्म दिया। बादशाह के ठीक सामने थाल रख दिया गया। बादशाह बहादुर शाह जफर पूर्ववत जमीन पर बैठे रहे। उनके ध्यान में भारत मां तथा उसकी परतंत्रता थी और कुछ नहीं।

‘अरे बादशाह! क्या तुम हमारे द्वारा लाए बेशकीमती उपहार को देखोगे नहीं?’   ऐसा कहते-कहते मेजर ने थाल पर से रेशमी रुमाल हटा दिया। थाल में तीन कटे हुए सिर पड़े थे। ये सिर उनके तीनों बेटों के थे। हिन्दुस्तान के देश भक्त बादशाह ने देखा। उनके तीनों राजकुमारों की शहादत हो चुकी थी। किंतु पिता की आंखों से एक आंसू भी न गिरा। वह चुप बैठे रहे।

मेजर हडसन ने अट्टहास किया- ‘कैसे बाप हो? तुम्हारी आंखों में अपने बच्चों के लिए आंसू भी नहीं।‘ 

स्वतंत्रता के पुजारी बादशाह का उत्तर था- ‘मैं शहंशाह हूं। शहंशाह कभी रोते नहीं।‘अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का चेहरा तमतमा उठा। (विनायक फीचर्स )

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