कहानी

आई लव यू

राजेन्द्र सिंह गहलोत- विनायक फीचर्स

प्रस्तुति  –  सुरेश प्रसाद आजाद

   ‘नमस्ते,  ‘दुआ सलाम, ‘हाय हेलो की तरह ही आज का प्रचलित वाक्य है-‘आई लव यू। न चाहते हुये भी दिन में 5-10 बार कानों में यह वाक्य सुनाई पड़ ही जाता है और यदि  टी.वी. खोलकर दिन भर में 3 घंटे भी बैठें तो यह वाक्य 20-25 बार तो कानों में बज ही जाता है। लेकिन अब यह अपनी निरंतर आवृत्ति की वजह से मधुर जलतंरग-सा नहीं बजता, बल्कि सड़क पर निकलती ढ़ेर सारी साइकिलों की घंटियों की बेअसर टुनटुनाहट-सा बजकर निकल जाता है, लेकिन बूढ़ा माइकल भी अजीब शख्स है कि पूरी उम्र गुजार देने के बाद भी बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापे तक  के सफर के अंतिम पड़ाव पर मृत्यु को गले लगाते-लगाते भी वह कभी अपनी प्रेयसी से लाख प्रयास करने के बावजूद ‘आई लव यू’  न कह सका। वैसे यह कोई विशेष बात नहीं है। हजारों ऐसे कायर प्रेमी होंगे जिनके दिल भरी जवानी में  कई-कई बार मचले होंगे, लेकिन हिम्मत लगातार जवाब देती रही होगी और अंत में बिना इश्क किये विवाह की वरमाला में गुंथी दुल्हन को हथिया कर सुखमय (या दुखमय)  दांपत्य जीवन बिताते हुए सुविधापूर्वक विधिवत् जिन्दगी के चार दिन काट देते हैं, लेकिन माइकल की कहानी इन सबसे अलग हटकर है।

 समय गुजरता चला गया। दिन, माह व वर्ष गुजरते चले गये और न जाने कितनी ही बार दोनों ने प्रेम-याचना का निर्णय लिया। लेकिन एक-दूसरे के आमने-सामने होते ही उनके निर्णय बिखरते चले गये।

समय के साथ यौवन के दिन कब गुजर गये, पता ही न चला। उम्र युवावस्था से प्रौढावस्था और प्रौढ़ावस्था से वृद्घावस्था की ढ़लान पर फिसलती चली गई। परस्पर प्रेम का इजहार किये बिना भी दोनों एक दूसरे के प्रति इस हद तक समर्पित हो उठे थे कि एक की जरा-सी परेशानी दूसरे को बैचेन कर देती थी। पूरी उम्र अविवाहित रहने से रिश्तेदारों के संबंध भी औपचारिक होते-होते समाप्त प्राय: होते चले गये और फिर दोनों ने ही अपने आपको नितांत एकाकी पाया। बस, यदि कोई अपना  करीबी लगता था तो वह था माइकल के लिये सोफिया और सोफिया के लिए माइकल। 

अब सोफिया अपनी जिद भी छोडऩे के लिये तैयार थी,  लेकिन चेहरे की झुर्रियां और सिर के पके बाल उसे आभास दिला देते थे कि यह उम्र-प्रेम-याचना या विवाह की नहीं है और यदि उसने ऐसा साहस किया भी, तो अपने उस प्रतिष्ठित समाज के बीच वह उपहास का पात्र बनकर रह जायेगी। जिसके बीच इतने दिनों की महत्वाकांक्षा की दौड़ में वह एक प्रतिष्ठित स्थान बना चुकी थी।

धीरे-धीरे जीवन के एकरसता भरे सफर में, दोनों के ही जीवन में सिर्फ एक ताजे गुलाब के फूल की महक, उसकी पंखुडिय़ों की कोमलता के रोमांचक स्पर्श से वृद्घावस्था के शरीर में भी उन दोनों का दिल तो निरंतर नवयुवा प्रेमियों-सा धड़कता रहता था। संभवत: यह अनकहे प्रेम के प्रतिदान से धड़कते दिल का रोमांचक अनुभव उन सफल प्रेमियों को भी तमाम उम्र न मिल पाया होगा, जिन्होंने प्रेम का प्रतिदान करके अपना, मनचाहा साथी पा लिया है।

परस्पर सानिध्य की डोर में बंधे उम्र गुजारते माइकल एवं सोफिया की जिन्दगी में उस समय विचलन भरी स्थिति आ खड़ी हुई जब माइकल साधारण बीमारी को अपनी लापरवाही के फलस्वरूप उग्र बनाता चला गया और अंतत: खाट पर जा लगा। ऐसे में सोफिया माइकल को इस असहाय स्थिति में अकेला न छोड़ सकी। आत्म-सम्मान, प्रतिष्ठा, जमाने की परवाह-कुछ भी तो उसकी राह न रोक सके और वह माइकल के ही घर में उसकी बीमारी की हालत में परिचर्या के उद्देश्य से रहने लगी।

गंभीर से गंभीरतम होती बीमारी की हालत से भी माइकल सोफिया को गुलाब का फूल देना एक दिन भी न भूला। बस, फर्क सिर्फ इतना था कि बगीचे से फूल तोड़कर सोफिया माइकल को देती और माइकल कांपते-थरथराते हाथों से उसे वापस सोफिया को दे देता, जिसे हाथों से लेकर अक्सर सोफिया सिसक उठती।

सोफिया के दिल में इन दिनों विचित्र-सा संघर्ष चल रहा था। रह-रह कर जहां वह अनजाने भविष्य की कल्पना करते सिहर उठती थी, वहीं दूसरी और टूटते, क्षीण होते शरीर से माइकल को भी अपना अंतिम समय समीप आता नजर आ रहा था। ऐसी स्थिति में रह-रह कर उसके दिल में एक ही कसक उठती थी कि क्या वह बिना अपने प्रेम का इजहार किये ही इस दुनिया से चला जायेगा? भले ही अब प्रेम के इजहार से उसे कुछ हासिल न हो, लेकिन वर्षों से जो चिंगारी दिल में दबी हुई थी, वह अब अंतिम समय में ज्वाला बनकर भभक उठी थी। मात्र प्रेम का इजहार तथा प्रेयसी द्वारा उनकी प्रेम-याचना का स्वीकारा जाना ही उसके जीवन की इस समय की सबसे महत्वपूर्ण अभिलाषा थी। पर अब भी उसके दिल में कहीं यह आशंका भी दबी हुई थी कि कहीं सोफिया मुझसे प्यार न करती हो। 

मात्र इतने दिनों  के साथ की वजह से  सहानुभूति के नाते ही वह उसकी देखभाल कर रही हो। यदि ऐसा हुआ तो यह अहसास मरने के बाद भी उसकी आत्मा को बैचेन किये रहेगा। 

एक दिन जब माइकल की हालत काफी बिगड़ गई तब डाक्टर ने भी जवाब दे दिया तो नजदीक खड़ी रोती हुई सोफिया को ओर करीब बुलाकर तकिये के नीचे से सुबह सोफिया के ही द्वारा तोड़े हुये गुलाब को उसकी ओर बढ़ाते हुये माइकल लरजते स्वर में बोला- ‘सोफिया! 

मैं पूरी उम्र तुमसे कुछ कहना चाहता रहा, लेकिन कह न सका। सोफिया! आई..लव..यू!’  और उसके आगे काल के क्रूर हाथों ने उसे कुछ कहने का मौका ही न दिया। सोफिया हिचकियां लेती हुई उठी और पागलों की तरह माइकल के चेहरे को चूमती हुई बोली- ‘माइकल, तुम न कह सके, पर मैं जानती हूं।

 मेरे शरीर के रोम-रोम को अहसास है कि तुम मुझे बहुत प्यार करते हो। आई लव यू माइकल, आई लव यू।‘  और फिर उठकर उसने अपने उस बड़े बक्से को खोला जिसे वह अपने साथ लेकर आई थी तथा पूरी जिंदगी कोई न जान सका था कि सोफिया उस बक्से में अपनी कौन-सी बेशकीमती वस्तु रखती थी जिसे वह कभी भी किसी को न दिखाती थी।

 उस बक्से में ऊपर तक भरे हुये सूखे हुये वे गुलाब के फूल थे जो माइकल उसे रोज भेंट करता था और वह उस प्रेम की अनमोल थाती को सहेज कर रखती जाती थी।

 धीरे-धीरे बक्से से फूलों को उठा-उठाकर वह माइकल के शव पर बिखेरती चली गई और बुदबुदाती रही- ‘माइकल, आई लव यूं।‘   पर पूरी उम्र जिस वाक्य को कहने एवं सुनने की माइकल को बेकरारी थी, वह अब इस दुनिया में नहीं था। 

सुबह जब मोहल्ले वालों ने देर तक दरवाजा न खुलते देखकर मकान का दरवाजा तोड़ा तो कमरे में चारों ओर बिखरे, मुरझाये हुये गुलाब के फूलों की पंखुडिय़ां और कल का एक ताजा गुलाब का फूल लिये खड़ी थी मानसिक संतुलन खो चुकी सोफिया, जो बार-बार कांपती-थरथराती आवाज में बस एक ही वाक्य कहती जा रही थी- ‘आई लव यू माइकल, आई लव यू…माई डियर माइकल..आई लव यू टू मच!’    (विनायक फीचर्स)

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