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बड़े मियां के साथ एक डफ़ाली चलता था। डफाली नहीं समझे? वह गाना सुना है ना, ‘ डफली वाले डफली बजा , मैं नाचूं तू नचा…!’ तो, जो डफली बजाता है, वह डफाली कहलाता है। डफाली दोयम दर्जे का होता है। उस गाने में डफलीवाले की भूमिका में थे ऋषि कपूर.. अब ऋषि कपूर चुके हीरो थे डफली के साज पर उनकी हीरोइन नाचती होगी इसलिए इठलाती हीरोइन की मचलती अदाएं जब व्याकुल हो जाती होगी तो वह डफ़ाली से मनुहार करती होगी, ‘डफलीवाले डफली बजा , मैं नाचूं…’
लेकिन, आम जीवन में डफलीवाले के दिनअच्छे नहीं रहते हैं। उन्हें अपने जीवन बसर के लिए दूसरे की ताल पर डफली बजाने होते हैं। तो, अंग्रेजों के जमाने के वक्त मियां के राज का लोकल लेबल पर हुकूमत चलता ही था। साथ में चलता था मियां का डफ़ाली ! 1947 या उसके बाद भी मियां भाई के रुतबे ओर रुआब में कभी कोई कमी नहीं रही।आगे हिंदुओं की जागरुकता ने उन्हें धूल चटवाए और दिन में आसमान के तारे दिखवाए…! लेकिन डफली नहीं छुटा , डफली वाली की के जाति हो गई थी। उस जाति को पमड़िया कहा जाने लगा। पमड़िया का काम होने लगा अपने आका के मुंह से निकले शब्दों को अपने डफली के सुर से सजाना।
अब किसे पता था जो मल्लिकार्जुन खड़गे अच्छे भले थे वे कांग्रेस की डफली बजाते – बजाते पक्के डफाली हो जाएंगे
। ओर हो गए तो राहुल गांधी और सोनिया गांधी के डफाली हो गए ! नेहरू के समय से ही एकस्थापित सत्य सभी को स्वीकार था, गांधी परिवार से बाहर कांग्रेस का कोई अध्यक्ष हो या प्रधानमंत्री, या विपक्ष का नेता उसे डफाली बजाना होगा। ठीक तर्ज और शब्द पर ! लेकिन, तब कोई क्या करे जब मियां के साथ चलने वाला डफलीबाज मियां के भाव, शब्द, भंगिमाएं पेश करने के पहले ही डफलीवाला डफली बजा दे! वह भी खूबसूरत और मौके की नजाकत से संगत करता हुए एक मुफीद तर्ज पेश कर दे। तब इसे ही कहते हैं, एक बर बड़े मियां, दो बर डफ़ाली!
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ज्ञानचंद मेहता कुंभ के मेले और गंगा स्नान की भव्यता पर राहुल गांधी, सोनिया गांधी से कुछ कहते नहीं बन रहता था कि तभी उनके डफलीवाले ने डफली बजाकर बचे खुचे कांग्रेसियों का मन विभोर कर दिया !
क्या खूब डफली बजाया है, गंगा में डुबकी लगाने से, गरीबी नहीं मिटेगी, पेट की आग नहीं बुझेगी, नौकरी नहीं लग जाएगी!!… वाह, वाह डफली वाले! क्या डफली बजाया है… बाप- दादे, देवता, पित्तर प्रेत सबकी आत्माओं को तुमने जगा दिया है बेटा ! अब यह तेरा भूत है, इसे तू ही संभाल! आगे के क्लास में बीड़ी पीते वामपंथियों के चवन्नी – अठन्नी उछाल कर सिल्वर स्क्रीन पर फेंकते देखकर खड़गे दादा के भविष्य पर विचार करने का जी चाहता है !