- सुरेश प्रसाद आजााद
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उतरप्रदेश मुख्यमंत्री आदित्यनाथ
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उपर्युक्त विषय के संबंध में चंदवारा झुमरी तिलैया झारखंड के डॉ अरविव्द मोदी ने मुख्यमंत्री आदित्य नाथ को निम्नलिखित तथ्यों को उल्लेख करते हुए लिखा है कि बुलंदशहर जिसका वास्तविक व स्थापित नाम “बरन” हुआ करता था, जिसकी स्थापना महाराजा अहिबरन ने की थी। बुलंदशहर जिले की आधिकारिक वेबसाइट और बुलंदशहर के बैरन हॉल में जिला प्रशासन द्वारा लगाया गया शिलापट भी इस बात का समर्थन करते हैं। बुलंदशहर के अंग्रेज जिलाधीश और प्रसिद्ध लेखक, इंडोलॉजिस्ट श्री एफ एस ग्राउज ने भी अपनी पुस्तक में बुलंदशहर के नाम बरन होने की बात लिखी है। बुलंदशहर में अभी भी जमीन के पट्टों पर, रजिस्ट्रियों पर बरन लिखने का प्रचलन है ।
14वीं शताब्दी में मुहम्मद तुगलक के जबरन धर्मपरिवर्तन के दबाव में बुलंदशहर (बरन) के निवासियों को या तो इस्लाम अपनाना पड़ा या फिर उन्हें अपना नगर छोड़ना पड़ा। जिन लोगों ने इस्लाम अपना लिया वो बरनी मुसलमान के नाम से जाने जाते हैं जबकि जो अपना धर्म बचाने के लिए नगर छोड़ने पर मजबूर हो गए वो बरनवाल कहलाते हैं।
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यह दुख का विषय है कि बुलंदशहर के संस्थापक को अपने नगर में वो नाम अभी तक नहीं मिल पाया जिसके वो पूर्णत हकदार हैं।
देश-विदेश में फैले हुए महाराजा अहिबरन के वंशज बरनवाल समुदाय आपसे यह अनुरोध करता है कि बुलंदशहर के मुख्य चौराहे पर महाराजा अहिबरन की मूर्ति लगवाई जाय ताकि सम्पूर्ण विश्व को बुलंदशहर के संस्थापक का नाम पता चल सके।
शहर के मुख्य मार्गों का नाम भी महाराजा अहिबरन के नाम पर रखने का हम अनुरोध करते हैं।
ऐतिहासिक रूप से प्रमाणिक तथ्य यह है कि बुलंदशहर का नाम बरन हुआ करता था और औरंगजेब के समय में इसका ऐतिहासिक अस्तित्व मिटाने के उद्देश्य से इसका नाम बदल कर बुलंदशहर कर दिया गया था। इसलिए यह जरूरी है कि बुलंदशहर का नाम भी वापस “बरन” किया जाए। आपके सक्षम शासनकाल में हमें पूरी उम्मीद है कि हमारे यह अनुरोध आप सहर्ष स्वीकार करेंगे और इसके लिए प्राधिकार को उचित आदेश जारी करने की मांग की है ।
जैसा की आप सभी को ज्ञात होगा की सोमवार और मंगलवार को अहिबरन जयन्ती बुलंद शहर मे मनाई गई।