ये जिंदगी क्या है?  -ज्ञानचंद मेहता

यह जिंदगी क्या है,

ग़म की दरिया है! 

न जीना यहां बस में 

न मरना यहां बस में 

अज़ब दुनिया है !

अब मैं यह भी कहता हूं, जीवन एक विश्वविद्यालय  है! शिक्षा है, अनुभव है। जिसने गहरी पैठ लगाई, मुट्ठियों में मोतियाँ भर ले आया। 70 के पार मेरी भी उम्र हो गई है। मृत्यु की आहटें एकाध बार तो जतला ही गई है। मैं भी कहा, तैयार ही बैठा हूं। आ जाना, जिस घड़ी जी चाहे। अब मैंने कोई काम भी नहीं करने। दुनिया से पस्त  हो गया हूं। ईश्वर मुझे थोड़ी बुद्धि कम दी होती तो कई तकलीफों से मैं मुक्त रहता। समझ ही नहीं पाता कभी कि रमेश मुझे मूर्ख बना रहा है। कमल मुझे ऐंठा हुआ भारी बदमाश मानता है!  बुद्धि कम होने से या नहीं होने से इन्सानी जिंदगी में बहुत फायदे होते हैं। वह लाभ मुझे नहीं मिला।   घाटे का जीवन जितना लंबा होता है घाटा और बढ़ता जाता है।

मेरे नहीं होने पर अनेक हैं बड़ी राहत महसूस करेंगे। बाजार में , व्यापार में, संघ में संगठन में समिति में कोई याद भी नहीं कर पाएंगे। चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाई , सगे भाई-बहन, साला, बहनोई , साढू  बहुत दिनों से मेरे विरुद्ध खड़े हैं।  बड़े गंभीर- गंभीर दोष पाल रखे हैं। बल्कि, रिश्तों के इस कड़वाहट को उनकी दूसरी पीढ़ी भी विरासत में  उनसे उतार लिया है, परे रहते हैं। यह किस्सा केवल मेरा नहीं है। किसी एक को भी यहां से कुछ भी कभी ऊपर साथ ले जाते नहीं देखा गया है। मगर, तैस  तमक और तेवर देखिए! प्रायः सभी की जिंदगी की कहानी एक ही है। किसी का मैं शत्रु हूं, कोई दूसरे का शत्रु है। दूसरा तीसरे का दुश्मन बना बैठा है। कोई  अन्य के लिए शत्रु बना दांत किचकिचा रहा है, वह अगले को कच्चा ही चबा जाएगा। 

मैं तो फिर भी बहुत बुरा नहीं हो। मैं आपके लिए खराब हूं। दो पल स्थिर हो कर कभी विचार किया मैं आपके लिए खराब कैसे हो गया? आपने भी तो मेरे साथ क्या कुछ अनर्थ  किया होगा? सोचिए, सोचिए!

      मैने कहा या कहता हूं ज़िंदगी एक यूनिवर्सिटी है। इसका उपयोग कीजिए।  आपकी प्रतिक्रिया आए तो मैं समझूंगा मेरी उपयोगिता अभी बाकी है! , और  सच पूछिए तो मुझे कोई जल्दी भी नहीं है। ठीक है, अच्छा लगा तो बढ़िया! वरना, बड़ी आयु में तो लोग बक- बक करते ही है..

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