नहीं हाथ परिणाम॥

हर घर में कैसी लगी, ये मतलब की आग।

अपनों को ही डस रहे, बने विभीषण नाग॥

सत्य धर्म की जंग में, जीत गए थे राम।

मगर विभीषण तो रहे, सदियों तक बदनाम॥

राम-राम में मैं रमू, बनूँ राम का भक्त।

चरणों में श्रीराम के, रहूँ सदा अनुरक्त॥

जिनका पानी मर गया, शर्म गयी पाताल।

वो औरों को दोष दें, छीटें रहे उछाल॥

हो जाए यूँ हर सुबह, नवमी का त्योहार।

दिखे सभी को बेटियाँ, देवी का अवतार॥

स्वार्थ से सम्बंध जुड़े, देते कब बलिदान।

वक़्त पड़े पर टूटना, उनकी है पहचान॥

फल की चिंता मत करो, देना उसका काम।

कर्म हमारा धर्म है, नहीं हाथ परिणाम॥

-डॉ. सत्यवान सौरभ

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