नवादा,(बिहार) । बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि कभी बाहुबलियों से अधूरी नहीं रही चाहे वह सुरजभान सिंह हो , शाहवउद्दीन हो छोटे सरकार के नाम से जाने – जाने वाले अंनत सिंह हो या फिर सुनील पांडे ऐसे ही बिहार बाहुबलियों से भरा पड़ा है । और सरकारी तंत्र की कमजोरी के कारण समय – समय पर अपना रंग दिखाता रहता है ।
ऐसे ही बाहुबली के नाम से परचित पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह सहित 27 दोषियों को रिहा करने पर सरकार को भारी विरोध का सामना करना पड़ा है । और एक बार फिर आनंद मोहन बिहार की राजनीति गलियारों में चर्चा का विषय वन ग्ए है ।
आनंद मोहन बिहार के पचगछिया गांव के रहने वाले हैं । उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे । 1974 में लोकनायक जयप्रकाश के संपूर्ण क्रांति के दौरान ही इनका प्रवेश राजनीतिक में हुआ था। उस समय वे मात्र 17 बर्ष के होंगे । कॉलेज की पढ़ाई छोड़ कर सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन में भाग लिया और इसी दौरान उन्हें 2 साल जेल में रहना पड़ा ।
19 90 के दशक में बिहार में इनका तूती बोलती थी । आंदोलन के बाद हुए चुनाव में जिले के महिषी सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते थे । उस समय बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव थे । 1993 में वे स्वर्णों के हक के लिए उन्होंने बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई थी। उस समय वे लालू यादव के विरोध कर ही राजनीति में निखरे थे ।
19 90 के दशक में ऐसा ताना-बाना बुना गया था कि जात की लड़ाई खुलकर सामने रोड पर आ गई थी । और सभी नेता अपने-अपने जातियों के लिए खुलकर बोलते नजर आ रहे थे । उस समय उन पर हत्या , लूट , अपहरण फिरौती , दबंगई समेत दर्जनों मामले दर्ज थे ।
1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी कृष्णैया के हत्या के मामले में निचली अदालत ने उन्हें दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई थी । आजाद भारत में यह पहला मामला था जिसमें एक राजनेता को मौत की सजा सुनाई गई थी । 2008 में हाई कोर्ट ने इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।
साल 2012 में आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की थी । सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले को खारिज करते हुए सजा
बरकरार रखा ।
बिहार सरकार ने 10 अप्रैल 2023 को बिहार कारा हस्तक 2012 के नियम 481(I) ( क) में संशोधन कर उस वाक्यांश को हटा दिया जिस में सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था । इस संशोधन के बाद अब ड्यूटी पर तैनात सेवक की हत्या अपवाद की श्रेणी में नहीं गिनी जाएगी बल्कि यह एक साधारण हत्या मानी जाएगी। इस संशोधन के बाद आनंद मोहन की रिहाई की प्रक्रिया आसन हो गई । क्योंकि सरकारी अधिकारी की हत्या के मामले में आनंद मोहन को सजा हुई थी ।
27 अप्रैल को उन्हें जेल से रिहा मिल गई । उनके साथ – साथ 27 अन्य लोग भी जेल से रिहा हो हुए । उक्त रिहाई होने वालो में एक की मौत छः महीने पहले ही जेल में हो गई है।
जेल से रिहा होने के बाद हजारों में रहे उनके समर्थकों ने सासाराम में रोड शो किया । उसके बाद वे पटना के लिए रवाना हो गए ।
इस इस फैसले से गोपालगंज के तत्कालीन जिला पदाधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी सदमे में है । और उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से इस पर हस्तक्षेप करने की मांग की है ।
इधर बिहार आईएएस एसोसिएशन ने इस पर एक मुहीम छेड़ रखी है और पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर सरकार के इस फैसले पर रोक रोक लगाने की मांग की है। अन्य नेताओं ने अपने – अपने से प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं ।
राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ,उप मुख्यमंत्री श्री तेजस्वी यादव एवं महागठबंधन के लोग केन्द्रीय मंत्री माननीय गिरीराज सिंह पूर्व मुख्यमंत्री श्री जीतन राम मांझी आदि नेता इसे सही मान रहे हैं । वहीं
भाजपा के पूर्व उप मुख्यमंत्री माननीय श्री सुशील कुमार मोदी, भाजपा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्री विजय कुमार सिन्हा, मायावती आदि इस फैसले को नकार रहे हैं।